अन्तर्यात्रा
कमल कुमार की विशेष पहचान एक सजग, सचेत और संवेदनशील कहानीकार के रूप में है। उनकी कहानियो का फलक बहुत बड़ा है। मध्यवर्ग की शहरी स्त्री का संघर्ष और विद्रोह दोनों उनकी कहानियों में व्यक्त हुए हैं।
कमल को सिर्फ स्त्रीवादी कहानीकार नहीं कहा जा सकता। वे कहती भी हैं, 'रचनाधर्मिता कटघरों में कैद नहीं रह सकती।' आज के इस कठिन समय में स्त्री और आम आदमी की स्थिति एक जैसी है। उनके जीवन के त्रासद अनुभव और भयावह होता जाता यथार्थ ही कहानियों का आधार है। उनमें कहीं जीवन के साधारण अनुभव हैं तो कहीं जटिल, दुविधापूर्ण स्थितियों में जीते और परास्त न होते पात्र हैं। जहाँ नैराश्य और अवसाद के बीज आशा की अरूप लौ अचानक ही जल उठती है। समकालीन जीवन की विसंगतियों, विडम्बनाओं और विद्रूपताओं के बीच प्रकाश की लौ प्रदीप्त करना और विद्रूपताओं के नीचे प्रकाश की लौ प्रदीप्त करना कमल के कहानीकार की सार्थकता है।
समय समय पर कमल कुमार ने कुछ ऐसी कहानियां लिखी हैं जिनकी अनुगूँज वर्षों तक पाठकों और समीक्षकों के मन-मस्तिष्क में गूंजती रही। उन कहानियों से प्रेषित होकर सम्पादकीय लिखे गये, और साप्ताहिक कॉलम में चर्चा की गई। अपराजेय, वेलनटाईन डे, मर्सी कीलिंग, केटलिस्ट, बेघर, नालायक, पूर्णविराम, सखियां, ऐसी ही कहानियां हैं। इन कहानियों को एक साथ पढ़ना लेखिका के समय की निरन्तरता में समृद्ध होते जाते लेखकीय अनुभव से गुजरना होगा।