गेटकीपर
लेखक के पहले और दूसरे कहानी-संग्रहों के सन्दर्भ में अभिव्यक्त उपर्युक्त मन्तव्य की प्रासंगिकता को प्रस्तुत संग्रह की कहानियों में भी देखा जा सकता है। ये कहानियां किसी भी कस्बे या शहर में किसी के साथ घट सकती है। इनसे गुजरते हुए हम कुछ ऐसस भी जानने-पहचानने लगते हैं—अपने रोजमर्रा के जीवन, रिश्तों-नातों, भूली-बिसरी यादों के बारे में, जिसकी हमें खोज-खबर नहीं थी। कभी मन को रमानेवाली किस्सागोई के अन्दाज में, कभी हल्की-फुल्की चुहल और आत्मालापी 'पिट' के साथ कथाकार हमें ऐसी जगहों में लिवा ले जाता है, जहाँ हम पाँव रखते डरते थे पर जो है हमारा अपना ही सुपरिचित भूगोल और हमारे वयस्क जीवन के बीच पड़े भारी परदे को हम एक ही कौंध में चीरती हुई किसी अनदेखे अनछुए मर्म के अचानक हाथ लग जाने की प्रतीति कराती हैं। तभी शायद हम अपने ही अधावधि जीवन्त स्मृति-बिम्बों को सचमुच साफ-साफ देखने लगते हैं।